herpes zoster

हर्पीस जोस्टर :-हर्पीस जोस्टर एक बहुत ही कष्टप्रदायक त्वचा की बीमारी है,जो कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को होती है। इसमें त्वचा पर पानी से भरे हुए छोटे-छोटे दाने एक ही साथ शरीर के एक हिस्से दाएं या बाएं भाग में निकलती है।यह बीमारी बहुत संक्रामक होती है,जो चिकन पॉक्स के वायरस वेरिसेला जोस्टर के कारण होती है।इसी वायरस के नाम पर ही इस बीमारी का नाम हर्पीस जोस्टर पड़ा है।यह बीमारी उस व्यक्ति को होने की सम्भावना ज्यादा होती है ,जिन्हें कभी पहले चिकन पॉक्स हुआ हो;क्योंकि यह वायरस चिकन पॉक्स ठीक होने के बाद नर्वस सिस्टम में चला जाता है और जब रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ जाती है तब यह वायरस नर्वस सिस्टम के रास्ते  त्वचा पर अपना प्रभाव छोटे-छोटे दाने के रूप में प्रकट करती है,जो पानी से भर जाते है और बहुत कष्ट देते हैं।

लक्षण :-त्वचा पर लाल-लाल फुंसियां निकलना और पानी भर जाना,बुखार होना,जोड़ों में दर्द,सिरदर्द,थकानआदि 

           हर्पीस जोस्टर के मुख्य लक्षण हैं।

उपचार :-(1) भृंगराज के पौधे के सर्वांग को पीस कर हर्पीस पर लगाने से इसका समूल नष्ट होता है।

             (2) एप्पल साइडर विनेगर को पानी में मिलाकर हर्पीस पर लगाने और एक कप पानी में एक चम्मच 

                  विनेगर को मिलाकर पीने से इसका नाश होता है।

              (3) टी ट्री ऑयल और जैतून के तेल को मिलाकर लगाने से हर्पीस जड़ से दूर हो जाती है।

              (4)गुड़हल के पौधे के पत्तों को पीसकर लगाने से हर्पीस तीन-चार दिनों में ठीक हो जाता है।

 


leprosy

कुष्ठ (कोढ़):-यह संसार की प्राचीनतम ज्ञात रोगों में से एक है ।चरक एवं सुश्रुत आदि चिकित्सा शास्त्रियों ने भी इसका विस्तृत विवेचन किया है ।यह बीमारी अधिकांशतः कर्क रेखा के आसपास गर्म देशों के उत्तरी एवं दक्षिणी पट्टी में ही सीमित है । यह अन्य देशों से लगभग उन्मूलित हो चूका है किन्तु भारत ,अफ्रीका और दक्षिणी अमरीका मे यह रोग अधिक व्यापक रूप में है ।कुष्ठ एक संक्रामक रोग है, जो माइक्रो बैक्टीरियल लेप्रो नमक जीवाणु के त्वचा या साँस के द्वारा शरीर में प्रवेश करने के कारण होता है ।कुछ समय बाद त्वचा पर सूखापन लिए हुए लाल या सफ़ेद चकते उभर आते हैं ।इसके बढ़ने के साथ -साथ उँगलियों में विकलांगता आने लगती है और दर्द रहित घावों के साथ हाथों -पांवों की उँगलियाँ गल जाती हैं ।लोग आज भी जो अंधविश्वासी हैं , इसे ईश्वर का प्रकोप मानते हैं और मनुष्य के द्वारा किये गए पापों का परिणाम समझते हैं। इससे दूर रहना,घृणा करना,अपशगुन मानना आदिआज समाज में व्याप्त है । 

उपचार :-(1 )करंज, नीम,और खदिर के 100 -100 ग्राम पत्तों को पानी में उबालकर नहाने से कुष्ठ का नाश होता है ।                                   

             (2 )बाकुची,और टिल 3 -3 ग्राम लेकर मिलाकर थोड़ा पीसकर प्रतिदिन सुबह -शाम सेवन करने से कुष्ठ का नाश होता है ।

             (3)आक की जड़ को छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर रखें और 2 रत्ती चूर्ण में 2 रत्ती सोंठ का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से कुष्ठ का समूल नाश होता है।

              (4 )बाकुची के बीज 25 ग्राम,सफ़ेद मूसली 25 ग्राम,और चित्रक 25 ग्राम लेकर सभी को कूट पीसकर चूर्ण बनाकर 4  ग्राम चूर्ण शहद 

                    के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से कुष्ठ का नाश हो जाता है ।

              (5 )निर्गुण्डी की जड़ को छाया में सुखाकर कूट पीस चूर्ण बनाकर 3 ग्राम सुबह  -शाम पानी के साथ सेवन से कुष्ठ का नाश हो जाता है ।


leucoderma

सफ़ेद दाग रोग  ( ल्यूकोडर्मा या विटिलिगो):-आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं के अनुसार सफ़ेद दाग एक त्वचा रोग है । मानव शरीर की त्वचा बाहरी स्तर में 

मैलेनिन नामक एक वर्णक (रंजक )द्रव्य गर्मी से त्वचा की रक्षा करता है ।जब यह मैलेनिन बनाने वाली कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं ;परिणाम स्वरुप 

शरीर के विभिन्न भागों पर सफ़ेद दाग बनने लगता है ।यह बीमारी कोई दर्दनाक नहीं है ,न ही इसके स्वास्थ्य से जुड़े कोई अन्य दुष्प्रभाव हैं,किन्तु इसके भावनात्मक और मनोवैज्ञानिकी परिणाम होते हैं । यह दो शब्दों ल्यूको एवं डर्मा से बना है ।ल्यूको का अर्थ सफ़ेद एवं डर्मा का अर्थ खाल है ;इसलिए इस बीमारी को ल्यूकोडर्मा या सफेद रोग कहते हैं ।

सफ़ेद रोग होने के कारण निम्नलिखित हैं -(1 )यह विकार शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली खुद रंग उत्पादन करने वाली कोशिका को नष्ट कर देता है ।

                                                        (2 )मधुमेह का प्रभाव या थायरायड रोग के कारण 

                                                        (3 )त्वचा का अधिक धुप के संपर्क में आने के कारण 

                                                        (4 )परिवार में पहले किसी को ये बीमारी होने के कारण आदि ।

उपचार:-चाकसू ,पंवार के बीज,वाकुची अंजीर की छाल और नीम की अंतर छाल सबको सामान भाग लेकर चूर्ण बनाकर रख लें । और प्रतिदिन छह माशा चूर्ण लेकर शाम को पानी में भिंगो दे और सवेरे पानी निथार कर पी लें और बची हुई दवा को दागों पर लगा लें ।रोगी को खाने में सिर्फ वेसन की रोटी और घी दें ।इस चूर्ण के सेवन से 40 दिन में सफ़ेद दाग नष्ट हो जायेगा और खाल पहले की तरह ज्यों की त्यों हो जाएगी ।


psoriasis disease

सोरायसिस :-लक्षण :-सोरायसिस मानव शरीर के त्वचा की ऊपरी सतह पर होने वाला एक चर्मरोग है।इसमें त्वचा पर एक मोटी परत के रूप में सिर के बाल के पीछे गर्दन,हाथ की हथेलियों,पांव के तलवों,कोहनी,घुटनों,एवं पीठ पर ज्यादा होती है।इसे छाल रोग के नाम से भी जाना जाता है।इसमें लाल,शुष्क दाने से युक्त परतदार चकते के रूप में होती है।इसमें शुष्क त्वचा होने पर खुजली भी होती है और खुजाने पर चिपचिपा द्रव का श्राव भी होता है,जो बहुत कष्टदायक होता है।

कारण:(1)वंशानुगत ।

          (2)प्रतिरक्षा प्रणाली की गड़बड़ी या अन्य कारणों से भी ।

           (3)तनाव और अधिक आहार असमानता यथा :-दही और मछली खाने ,फ़ास्ट एवं जंक फ़ूड का ज्यादा प्रयोग ,धूम्रपान की अधिकता आदि।

           (4)बैक्ट्रियल संक्रमण के कारण आदि।

उपचार :-सोरायसिस एक असाध्य बीमारी है ,जिसका आयुर्वेद के अतिरिक्त किसी भी चिकित्सा पद्धति में समूल नष्ट करने का इलाज उपलब्ध नहीं है।

 आयुर्वेद इसे असाध्य बीमारी नहीं मानता है।कहने का तात्पर्य आयुर्वेद सोरायसिस को समूल नष्ट करने में सक्षम है।इसी कड़ी में मैंने यह प्रयोग स्वयं अनुभूत किया हुआ यहाँ दिया है।आशा है पाठक गण इसे अपनाकर लाभान्वित होंगे।

उपचार सामग्री:(-1 ).सफ़ेद आक का फूल 500 ग्राम( छाया में सुखाया हुआ )( 2 .)नारियल तेल 250 मिली ,(3 .)ढ़ेलेवाला कपूर  

बनाने की विधि :-सर्वप्रथम कढ़ाही को आग चढ़ाकर उसमें नारियल तेल डालकर गरम करें ,गरम होने पर उसमें छाया में सुखाया हुआ सफ़ेद आक के फूल को डाल कर जलाएं ।जल जाने के बाद उसे उतार कर ठंडा कर उसमें ढ़ेलेवाला कपूर को पीसकर मिलाकर एक साफ शीशी में रख लें और दिन में दो बार लगाएं। ऐसा करने से सोरायसिस जड़मूल से नष्ट होगा।यह स्वयं अनुभूत एवं अचूक औधधि है,इसमें कोई संदेह नहीं है।

नोट :-यह सोरायसिस के आलावा दाद,एग्जीमा,खुश्क एग्जीमा,बहनेवाला एग्जीमा की भी यह अचूक एवं अनुभूत औधधि है।


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