black spot disease

त्वचा पर दाग धब्बे  :- त्वचा का सुन्दर होना ईश्वर का वरदान माना जाता है,किन्तु यदि किसी के चेहरे या शरीर पर दाग धब्बे का निशान हो तो यह उसके लिए अत्यंत दुखदायक स्थिति होती है।आज त्वचा पर दाग धब्बे से प्रायः अधिकांश लोग प्रभावित हैं। किसी आकस्मिक घटना आदि से लोगों का चेहरा या अन्य भाग अत्यंत कष्ट प्रदान करता है।वास्तव में मनुष्य की सुंदरता में दाग धब्बे का दाग मानसिक तौर पर अत्यंत गहरा प्रभाव डालता है।हमेशा व्यक्ति के दिलो दिमाग में प्रभाव डालते रहता है। यह उस समय और अधिक कष्टदायक होता है,जब सामने कोई सुन्दर व्यक्ति होता है।यह जलने,कटने,चोट लगने,किसी जीव जंतु के संक्रमण जैसे फंगस,बैक्टीरिया,वायरस आदि के कारण भी त्वचा पर दाग धब्बे हो जाते हैं।कभी - कभी तो किसी सिरफिरे आशिक की वजह से भी चेहरे पर जलनशील पदार्थों को डाल देने से दाग धब्बे बन जाते हैं।

लक्षण :- त्वचा खुरदरी होना,त्वचा पर काला निशान पड़ जाना,त्वचा का फट सा जाना,खुजली होना आदि त्वचा के जले हुए दाग के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- आकस्मिक दुर्घटना,किसी चोट के ठीक होने के बाद निशान, काला धब्बा,आग से जलना,त्वचा में संक्रमण,आग से जलना,जलनशील पदार्थों का शरीर पर गिर जाना,कीड़े आदि के काटने से कारण,मुंहासे,हायपर पिग्मेंटेशन,प्रदूषण,सौंदर्य प्रसाधनों का अत्यधिक प्रयोग,ओजोन परत में छेद का होना दाग धब्बे के हो जाने के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) एलोवेरा जेल का प्रतिदिन सुबह - शाम लगाने से दाग धब्बे का निशान ठीक हो जाता है।

(2) टमाटर एवं नीम्बू का रस समान भाग लेकर मिला लें और उसे दाग धब्बे पर लगाने से ठीक हो जाता है।

(3) नारियल तेल एवं चन्दन तेल मिलाकर दाग धब्बे पर लगाने से दाग धब्बे ठीक हो जाता है।

(4) गुलाब जल,मुल्तानी मिटटी एवं नीम्बू का रस मिलाकर लगाने से दाग धब्बे दूर हो जाते हैं।

(5) पुदीने की पत्तियों को पीसकर उसका रस लगाने से दाग धब्बे दूर हो जाते हैं।

(6) मेथी के बीजो को रात में पानी में भिगों दें और सुबह पीसकर लगाने से दाग धब्बे ठीक हो जाते हैं।

(7) खीरा के रस में हल्दी एवं गुलाब जल मिलाकर लगाने से दाग धब्बे ठीक हो जाते हैं।

(8) गुलाब जल में थोड़ा सा ग्लिसरीन मिलाकर लगाने से दाग धब्बे दूर हो जाते हैं।

(9) रात में दूध में चीज मिलाकर सुबह लगाने से दाग धब्बे ठीक हो जाते हैं।

(10) बेकिंग सोडा और शहद मिलाकर कुछ दिनों तक लगाने से दाग धब्बे दूर हो जाते हैं।

(11) जायफल को दूध में घिसकर लगाने से दाग धब्बे दूर हो जाते हैं।

(12) कच्चे दूध में चिरोंजी घिसकर लगाने से दाग धब्बे दूर हो जाते हैं।


urticaria disease

 शीत पित्त या पित्ती रोग :- शीत पित्त या पित्ती त्वचा में होने वाला एक सामान्य रोग है,जो मुख्यतः एलर्जी के कारण होते हैं।यह त्वचा पर दिखाई देने वाले खुजलीयुक्त उभार धारियों या चकत्ते के रूप में होते हैं।अधिकांशतः ये लाल रंग के होते हैं जो शरीर पर दृष्टिगोचर होते हैं।कभी - कभी किसी पेड़ - पौधों के पत्तियों का शरीर में स्पर्श होने से हो जाते हैं।साथ ही कई विशेष खाद्य पदार्थों के सेवन से शरीर हिस्टामिन निकालने लगता है और परिणामस्वरूप शरीर पर उसके प्रतिक्रिया रूप में शीत पित्त दिखाई देता है,जिसे सामान्य भाषा में लोग पित्ती उछलना कहते हैं।

लक्षण :- त्वचा पर खुजली वाली लाल - लाल निशान,उभरी हुई लाल निशान,त्वचा के रंग वाली धारियां,त्वचा पर उभरे हुए लाल - लाल दाने,खुजलीदार चकत्ते,दर्द,व्याकुलता बढ़ जाना,बुखार का भी कभी - कभी हो जाना,मन में घबराहट,उल्टी आदि शीत पित्त या पित्ती रोग के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण :- पाचन तंत्र की गड़बड़ी,खून में अधिक उष्णता,दवाओं का कुप्रभाव,गर्मी से आने पर ठन्डे पदार्थों का सेवन,मसालेदार आहार का सेवन,फ़ास्ट फ़ूड एवं चाइनीज खाना खाने,हिस्टामिन नमक टॉक्सिस पदार्थ का त्वचा में प्रवेश,मधुमक्खियों,कीटों के काटने से,धूलकणों एवं पराग कणों के संपर्क में आने से,तापमान में उतर - चढ़ाव के कारण,आँतों में पाए जाने वाले पैरासाइट के कारण आदि शीत पित्त या पित्ती रोग के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) शीत पित्त या पित्ती रोग चिरोंजी के सेवन से ठीक हो जाता है।

(2) दो ग्राम नागकेशर को शहद में मिलकर चाटने से शीत पित्त या पित्ती रोग ठीक हो जाता है।

(3) एक चम्मच त्रिफला चूर्ण शहद में मिलाकर सेवन करने से भी शीत पित्त या पित्ती रोग दूर हो जाता है।   

(4) आंवले के चूर्ण में गुड़ मिलाकर खाने से गर्मी के कारन होने वाली पित्ती का नाश हो जाता है।

(5) नीम की चार - पांच निबोलियों का गुदा शहद में मिलाकर खाने से शीत पित्त या पित्ती रोग दूर हो जाता है।

(6) अदरक का रस एवं शहद मिलाकर सेवन करने से भी शीत पित्त या पित्ती रोग दूर हो जाता है।

(7) हल्दी,दूध एवं शहद मिलाकर सेवन करने से शीत पित्त या पित्ती रोग दूर हो जाता है।

(8) पानी में नीम्बू निचोड़कर स्नान करने से पित्ती रोग दूर हो जाता है।

(9) नारियल के तेल में कपूर मिलाकर लगाने से शीत पित्त या पित्ती रोग दूर हो जाता है।

(10) चन्दन के तेल लगाने से भी पित्ती रोग दूर हो जाता है।


abscess disease

फोड़ा - फुंसी रोग :- फोड़ा - फुंसी एक सामान्य त्वचा का संक्रमण रोग है,जो त्वचा के नीचे रोम छिद्रों के एक समूह में विकसित होता है।वास्तव में फोड़ा - फुंसी बैक्टीरिया की वजह से होता है,जो आमतौर पर त्वचा की सतह पर एवं नाक की परत में बिना नुकसान पहुंचाए रहते हैं।सर्वप्रथम संक्रमित क्षेत्र की त्वचा लाल हो जाती है और त्वचा के भीतर एक गांठ बन जाती है।दो -तीन दिनों में यह मवाद से भर जाता है।यह किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है।यह स्टेफिलोकोकस व युस नामक जीवाणु के कारण होता है।सामान्य तौर पर यह चेहरा,गर्दन,बगल,कंधे एवं नितम्बों पर होते हैं। इसके अतिरिक्त और भी दूसरी जगहों पर भी हो सकते हैं।

लक्षण :- त्वचा पर लाल रंग का सूजन,स्पर्श करने पर गर्म महसूस होना,बुखार आना,दर्द महसूस होना,मवाद से भरा हुआ सूजन,गुलाबी से गहरा लाल रंग वाला त्वचा आदि फोड़ा - फुंसी रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- बालों के रोम की सूजन,बैक्टीरिया का संक्रमण,कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली,कीमोथेरेपी,मधुमेह,एड्स का होना,परिधीय संवहनी विकार,अल्सरेटिव कोलाइटिस,खून में विषाक्त द्रव्यों का प्रवेश,एलर्जी आदि फोड़ा - फुंसी रोग के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) हल्दी को सरसों के तेल में मिलाकर पेस्ट बनाकर फोड़े - फुंसी पर एवं आसपास के भागों पर लगाने से फोड़ा -फुंसी रोग ठीक हो जाता है।

(2) एरंडी का तेल लगाने से फोड़ा - फुंसी रोग ठीक हो जाता है।

(3) जीरे को पानी के साथ पीसकर पेस्ट बनाकर लगाने से फोड़ा - फुंसी रोग ठीक हो जाता है।

(4) प्याज और लहसुन को पीसकर पेस्ट बनाकर लगाने से फोड़ा - फुंसी रोग ठीक हो जाता है।

(5) चन्दन का लेप फोड़ा - फुंसी पर लगाने से जलन,सूजन और फोड़ा - फुंसी ठीक हो जाता है।

(6) ग्वारपाठा के गुदा में हल्दी मिलाकर लेप करने से फोड़ा पाक कर फूट जाता है और ठीक हो जाता है।

(7) नीम और तुलसी की पत्तियों को पीसकर उसका लेप लगाने से फोड़ा - फुंसी रोग ठीक हो जाता है।

(8) नीम की कच्ची कोंपलें सुनह खाली पेट खाने से फोड़ा - फुंसी रोग ठीक हो जाता है।

(9) पानी में नमक डालकर उबालें और उसमें सूती कपडा भिंगों कर उससे भिंगों कर कुछ देर रखने से फोड़ा - फुंसी रोग ठीक हो जाता है।

(10) नीम की पत्तियों को पानी में उबालें और उससे फोड़े - फुंसी को धोने से ठीक हो जाता है।

(11) अशोक की ताज़ी छाल 30 से 40 ग्राम या सूखी छाल 10 से 15 ग्राम और मुलेठी मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से रक्त दोष विकार दूर हो जाता है,जिससे फोड़ा - फुंसी रोग ठीक हो जाता है।


seborrhoea disease

त्वचा वसास्राव रोग :- त्वग्वसास्राव या त्वचा वसास्राव रोग सिर की त्वचा का एक कष्टदायक रोग है,जो शरीर के तैलीय क्षेत्रों से स्रावित ऑइल की वजह से होता है।यह ज्यादातर सिर पर होता है,किन्तु यह चेहरा,नाक के किनारे,कान,पलकें,भौंहे एवं छाती के आसपास भी हो सकते हैं।त्वग्वसा स्राव रोग त्वचा की वसा निकालने वाली ग्रंथियों के अधिक स्रवण से उत्पन्न होता है।वैसे तो शरीर से स्वस्थ अवस्था में भी त्वग्वसा स्राव होता है;किन्तु रोगयुक्त स्राव का रंग,रुप एवं गंध में भिन्नता होती है।यह स्राव सूखकर पपड़ी जैसा मल बन जाता है।

लक्षण :- त्वचा पर चकत्ते,त्वचा की परत उतरना,त्वचा पर पपड़ी बनना,लालिमा,शुष्क त्वचा हो जाना,रुसी,खुजली होना,त्वचा में जलन,परतदार पैच,जिद्दी डैंड्रफ आदि त्वग्वसा स्राव रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- रक्त की कमी,कब्जियत,गर्भाशय के दोष,अमाशय के दोष,चिंता,आद्रता युक्त उष्ण जलवायु,स्वच्छता का अभाव,विटामिन की कमी,मौसमी परिवर्तन,तनाव,इम्युनिटी को दबाना आदि त्वग्वसा स्राव रोग के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) नियमित रुप से त्वचा की स्वच्छता का ध्यान रखकर त्वग्वसा स्राव रोग से बचा जा सकता है।

(2) दैनिक खाद्य पदार्थों में प्रचुर मात्रा में विटामिन एवं पोषक युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन से भी त्वग्वसा स्राव रोग से बचा जा सकता है।

(3) नियमित रुप से सप्ताह में दो या तीन बार त्रिफला चूर्ण के सेवन से त्वग्वसा स्राव रोग से छुटकारा पाया जा सकता है।

(4) मांसाहार खाद्य पदार्थों के सेवन से परहेज करके भी त्वग्वसा स्राव रोग से मुक्त रहा जा सकता है।

(5) प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों के कम सेवन से भी त्वग्वसा स्राव रोग से बचा जा सकता है।

(6) अत्यधिक वसा युक्त खाद्य पदार्थों के कम सेवन करने से यानि संतुलित उपयोग से भी त्वग्वसा स्राव रोग से बचा जा सकता है।


pimple disease

मुँहासा या पिटिका रोग :- मुंहासा एक सामान्य रोग है जो प्रायः 14 से 30 साल तक की उम्र में ज्यादा होता है।यह तैलीय त्वचा वाले लोगों को अधिक होते हैं।मुंहासे वास्तविक रूप से तेल ग्रंथियों से सम्बंधित एक विकार है,जो हार्मोनल परिवर्तनों के फलस्वरूप यानि हार्मोन असंतुलन की वजह से होता है।त्वचा में स्थित रोम छिद्र तेलग्रंथि वाली कोशिकाएं से जुड़ी होती हैं और जब हार्मोन असंतुलित होता है;तब यह रोम छिद्रों को अवरुद्ध कर देता है।परिणामस्वरूप त्वचा अपनी स्निग्धता बरक़रार रखने में असहज महसूस करने लगती है।यही वजह मुहांसे का कारण बनती है।

मुहांसे का प्रकार :- व्हाइट हेड्स ,ब्लैक हेड्स ,पेपुल्स,दाना,नोड्यूल एवं पुटी (cyst)आदि मुहांसे के प्रकार हैं।

लक्षण :- चेहरे पर लालपन लिए हुए फुंसियां,गाल व नाक के आसपास फुंसियां,त्वचा के नीचे मवाद का बनना,काले छोटे-छोटे धब्बे हो जाना,चेहरे पर बंद छिद्रित छिद्र,खुली छिद्रित छिद्र,आदि मुहांसे के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- हार्मोनल असंतुलन,पाचन तंत्र में दिक्क्तें,नींद की कमी,क्रीम,लोशन आदि का अधिक प्रयोग करना,अत्यधिक चाय।कॉफ़ी का उपयोग,वासा ग्रंथियों के स्राव का रुक जाना,तनाव,वंशानुगत,जंक एवं फ़ास्ट फ़ूड का अत्यधिक प्रयोग करना आदि मुहांसे के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) कच्चे दूध में नींबू मिलाकर रुई द्वारा चेहरे को साफ करने से मुहांसे धीरे-धीरे ठीक हो जाते हैं।

              (2) मुल्तानी मिट्टी में नींबू व टमाटर का रस मिलाकर मुहांसे पर लगाकर और आधे घंटे बाद साफ कर लेने से कुछ ही दिनों में ठीक 

                    हो जाता है।

              (3) मुल्तानी मिट्टी में चन्दन पाउडर और गुलाब जल मिलाकर मुहांसे पर लगाने से ठीक हो जाते हैं।

              (4) एक चम्मच तुलसी के पत्तों का पाउडर,एक चम्मच नीम के पत्तों का पाउडर एवं एक चम्मच हल्दी पाउडर गुलाब जल के साथ 

                    मिलाकर मुहांसे पर लगाने से ठीक हो जाता है।

              (5) मसूर की दाल का पाउडर बनाकर रख लें और दो चम्मच में चुटकी भर हल्दी,नींबू की कुछ बूंदें,दही मिलाकर मुहांसे पर लगाने 

                   से ठीक हो जाता है।

              (6) खीरे का रस,टमाटर का रस,मुल्तानी मिट्टी,हल्दी चूर्ण,चन्दन पाउडर सबको मिलाकर मुहांसे पर लगाने से ठीक हो जाता है।


skin pigmentation disease

चेहरे की झाईं रोग :- चेहरे की झाईं रोग आधुनिक परिवेश में एक गंभीर समस्या के रूप में दृष्टिगोचर हो रहा है,जो चेहरे की सुंदरता को नष्ट कर देता है।वास्तव में चेहरे की झाईं रोग तेज धूप में ज्यादा देर तक रहने से त्वचा में स्थित मेलेनोसाइट्स नामक ग्रंथि ज्यादा मेलेनिन उत्पादित करने लगता है परिणामस्वरूप चेहरे पर झाईं बनने लगता है।चेहरे पर झाईं बनने का मुख्य कारण सूर्य की पराबैंगनी किरणों का दुष्प्रभाव ही है।आज के समय में विवाहित स्त्रियों या बड़े उम्र की महिलाओं को ज्यादातर झाईं होती हैं ;किन्तु छोटी उम्र की लड़कियाँ भी इससे पूरी तरह से बची नहीं हैं।ज्यादातर महिलाओं में रक्त एवं श्वेत प्रदर की बीमारियों के कारण भी चेहरे पर झाईं बनने लगती है।अधिकांशतः यह विटामिन ई या बी कॉम्प्लेक्स की न्यूनता,खून की कमी आदि के कारण झाईं रोग होती है।

प्रकार :- (1)यूमेलेनिन :- यह बालों,त्वचा और निप्पल के चारों ओर काले हिस्से में पाया जाता है । बालों ,त्वचा और आँखों का काला और भूरा रंग मेलेनिन के इसी प्रकार पर निर्भर करता है।

(2) फियोमेलेनिन :- यह बालों और त्वचा में पाया जाता है।यह मेलेनिन त्वचा और बालों को गुलाबी व लाल रंग प्रदान करता है;किन्तु सूर्य की हानिकारक किरणों यूवी के दुष्प्रभाव से रक्षा नहीं कर पता है।

(3) न्यूरोमेलेनिन :- यह मेलेनिन मस्तिष्क के विविध भागों में पाए जाते हैं।इसकी न्यूनता से तंत्रिका तंत्र सम्बन्धी विकार हो जाते हैं।

लक्षण :- चेहरे पर हलके भूरे रंग के दाग का हो जाना,लाल रंग का होना,हल्के काले रंग का हो जाना,चेहरे का निस्तेज हो जाना आदि झाईं रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- सूर्य की रौशनी में ज्यादा देर तक रहना,त्वचा में स्थित मेलेनिन का ज्यादा सक्रिय होना,वंशानुगत कारण,बढ़ती उम्र,गर्भावस्था,स्त्रियों को रक्त एवं श्वेद प्रदर की बीमारियां,कॉस्मेटिक्स सौंदर्य प्रसाधनों का अत्यधिक                  प्रयोग,कब्ज,खून की कमी,इम्यून सिस्टम की गड़बड़ी,विटामिन ई एवं बी कॉम्प्लेक्स की कमी आदि झाईं रोग के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) केले एवं नीम्बू के रस को मिलाकर चेहरे की झाईं पर लगाने से झाईं रोग 

                   का नाश हो जाता है । 

              (2) लहसुन एवं शहद को मिलाकर पेस्ट बनाकर चेहरे की झाईं पर लगाने 

                   से झाईं रोग दूर हो जाता है।

              (3) संतरे के छिलके को पीसकर तुलसी के रस में मिलाकर चेहरे की झाईं 

                    पर लगाने से झाईं ठीक हो जाता है।

              (4) चिरोंजी को पीसकर दूध में मिलाकर पेस्ट बनाकर लगाने से चेहरे की 

                   झाईं रोग का नाश हो जाता है।

              (5) अनानास,पका पपीता,जामुन,संतरा,सेब,स्ट्राबेरी,शहतूत आदि को चेहरे 

                   की झाईं पर लगाने से ठीक हो जाता है।

              (6) कच्चे पपीते को पीसकर पेस्ट बनाकर उसमें थोड़ा सा नीम्बू का रस 

                   मिलाकर लगानेसे चेहरे की झाईं ठीक हो जाता है।

              (7) प्याज और लहसुन के पेस्ट को सिरके की कुछ बूंदों के साथ मिलाकर 

                   लगाने से झाईं रोग ठीक हो जाता है।

              (8) कच्चे आलू और उबले काबुली चने का पेस्ट बनाकर चेहरे की झाईं पर 

                   लगाने से झाईं ठीक हो जाता है।

             (9) संतरे के छिलके के चूर्ण को गुलाब जल में मिलाकर झाईं पर लगाने से 

                  झाईं का दाग ठीक हो जाता है।

             (10) एलोवेरा जेल प्रतिदिन चेहरे की झाईं पर लगाने से दूर हो जाता है।

             (11) बैगन का रस निकालकर झाईं पर लगाने से ठीक हो जाता है।

            


xeroderma disease

शुष्क त्वचा या त्वचाखरता रोग :- शुष्क त्वचा या त्वचाखरता रोग एक अत्यंत खतरनाक रोग है,जिसमें त्वचा में रुखापन,खुरदरी त्वचा,त्वचा में पपड़ी या छोटी दरारें पड़ जाती हैं।जाड़े के मौसम में बाहर की ठंडी हवा और अंदर की गर्म हवा के कारण एक निम्न आद्रता वाला वातावरण का पैदा हो जाने के कारण होता है।इस रोग में त्वचा अपनी स्वाभाविक नमी खो देता है ;परिणामस्वरूप उसमें दरार और पपड़ी पड़ने लगती है,जो काफी भद्दी और पीड़ादायक हो जाती है।जेरोडर्मा आमतौर पर खोपड़ी,पैरों के निचले भाग,बाँह,हाथों,पेट के किनारों और जाँघों के आसपास होती है।वास्तव में यह समस्या अध्यावरणी तंत्र की गड़बड़ी के कारण होती है।

लक्षण :- खुरदरी,सुखी त्वचा पपड़ी या छोटी दरारें युक्त होना,त्वचा का उखाड़ना,पपड़ी 

           पड़ना,त्वचा में लगातार खुजली,त्वचा में दरार,लाल रंग के निशान,त्वचा में 

           सूजन आदि शुष्क त्वचा या त्वचाखरता रोग के प्रमुख लक्षण हैं|

कारण :- बार-बार स्नान करना और हाथ धोना,रूखे साबुन से हाथ धोना,विटामिन ए 

            एवं डी की कमी,सूरज की किरणों से,प्रदुषण,दवाओं का कुप्रभाव,आनुवांशिक 

            कारण,बढ़ती उम्र,दमा और थायरॉइड आदि शुष्क त्वचा या त्वचाखरता रोग 

            के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) ओमेगा-3 युक्त फल और सब्जियाँ (जैसे-अखरोट,सफोला तेल,दलिया,

                    सादे पानी की मछलियाँ आदि ) खाने से त्वचा की नमी को उड़ने से 

                   बचाने वाले तंत्र को मजबूती मिलती है और शुष्क त्वचा या त्वचाखरता 

                   रोग होने की सम्भावना नहीं रहती है।

(2) एलोवेरा जेल के प्रतिदिन सुबह-शाम प्रयोग से शुष्क त्वचा या त्वचाखरता रोग ठीक 

     हो जाता है। 

(3) एक चम्मच ग्लिसरीन और चार चम्मच गुलाब जल मिलाकर लगाने से शुष्क त्वचा 

     या त्वचाखरता रोग ठीक हो जाता है।

(4) दो चम्मच मुल्तानी मिटटी,एक चम्मच खीरे का रस और एक चम्मच शहद या दूध 

     लेकर सबको मिलाकर प्रतिदिन सुबह लगाने से शुष्क त्वचा या त्वचाखरता रोग 

      ठीक हो जाता है।

(5) एक चम्मच सेब का सिरका,दो चम्मच पानी,एक चम्मच शहद लेकर सबको 

     मिलाकर लगाने से शुष्क त्वचा या त्वचाखरता रोग ठीक हो जाता है।

(6) दो चम्मच शहद एवं एक चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर लगाने से शुष्क त्वचा 

     या त्वचाखरता रोग दूर हो जाता है।

(7) दो चम्मच मेथी के बीज,दो चम्मच जैतून के तेल या नारियल के तेल को मिलाकर लगाने से शुष्क त्वचा या त्वचाखरता रोग ठीक हो जाता है । 







 


chilblains disease

बिवाई रोग :- बिवाई रोग एक आम समस्या है,जो सर्दियों में अक्सर ठन्डे तापमान के कारण हो जाते हैं।इसमें ऐड़ियों के नीचे की बाहरी सतह की त्वचा कड़ी,सूखी एवं मोटी हो जाती है।कभी-कभी तो बिवाई इतनी गहरी एवं दरार युक्त हो जाती कि उनसे रक्त निकलने लगता है एवं चलने-फिरने में अत्यंत कष्ट होता है।बिवाई रोग अधिकतर पैरों में होता है;किन्तु हाथों में भी देखने को मिलता है।

लक्षण :- सूखी त्वचा,ऐड़ी की त्वचा में लालपन,गंभीर सूजन,ऐड़ी में दरारें,ऐड़ी से रक्त बहना,ऐड़ी में खुरदरापन,पैर में जलन आदि बिवाई रोग के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- मोटापा,लगातार खाली पैर चलना,पसीने की निष्क्रिय ग्रंथियाँ,सूखी जलवायु में रहना,जूते पीछे से खुले हुए पहनना,मधुमेह,कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली,थायराइड,एक्जीमा,शुष्क त्वचा आदि बिवाई के मुख्य कारण हैं

उपचार :- (1) शहद की मालिश से बिवाई रोग ठीक हो जाता है ।

              (2) सरसों के 100 ग्राम तेल में 50 ग्राम देशी मोम डालकर और उसमें कपूर चूर्ण डाल कर रख लें ।एक सप्ताह के सेवन से बिवाई 

                   रोग ठीक हो जाता है।

              (3) नारियल तेल के सेवन से भी बिवाई रोग ठीक हो जाता है ।

              (4) केले के गूदे को बिवाई में लगाने से बिवाई रोग ठीक ही जाता है ।

              (5) जैतून तेल की मालिश से भी बिवाई रोग ठीक हो जाता है ।

              (6) एलोवेरा जेल लगाने से बिवाई रोग ठीक हो जाता है ।


               













     


eczema disease

एक्जीमा या छाजन रोग  :- एक्जीमा या छाजन रोग त्वचा की एक बीमारी है ,जिसमें त्वचा सूखी,खुरदरी,अत्यंत खुजलीदार एवं धब्बेदार हो जाती है ।एक्जीमा या छाजन रोग की उत्पत्ति अति संवेदनशीलता एलर्जी के कारन होती है । एक्जीमा या छाजन रोग में त्वचा में खुजली,तनाव या खरोंच लगने से बहुत कष्ट होता है ।यह रोग अधिकांश घुटनों के पीछे,कोहनी के मोड़ों पर ,कलाइयों ,गला एवं पैरों पर पाए जाते है ।यह कई प्रकार के होते हैं ,जैसे :- संस्पर्श जो किसी खास पदार्थ के संपर्क में आने ,त्वग्वसास्राव में सिर पर चकत्ते और लालिमायुक्त,चक्राभ एक्जीमा या छाजन जो सिक्के के आकार के चकत्ते या घाव ।

लक्षण :- त्वचा में खुजली,शुष्क खुरदरी त्वचा,त्वचा पर दानेदार धब्बे,सिक्के के आकार के चकत्ते या घाव,खुजलाने पर पानी की तरह चिपचिपा स्राव आदि एक्जीमा या छाजन रोग के प्रमुख लक्षण हैं ।

कारण :- शुष्क त्वचा,शुष्क जलवायु,एलर्जी के कारण,आनुवांशिक उत्परिवर्तन,प्रतिरक्षा प्रणाली की निष्क्रियता,साबुन या डिटर्जेंट,धूल के कण,पराग एवं खाद्य -पदार्थों से एलर्जी,चिंता एवं मानसिक तनाव आदि एक्जीमा या छाजन रोग के मुख्य कारण हैं ।

उपचार :- (1) पापीती का दूध एक्जीमा या छाजन रोग को नष्ट करता है ।

              (2) सफ़ेद आक के फूल को को छाया में सुखाकर नारियल में जलाएं धीमी आंच पर और ठंडा कर उसमें ढेला वाला कपूर चूर्ण कर 

                    मिलाकर सुबह -शाम लगाने से एक्जीमा या छाजन रोग बहुत जल्दी ठीक हो जाता है ।

              (3) तुलसी के पत्ते को नीबू के रस के साथ पीसकर लगाने से एक्जीमा या छाजन रोग ठीक हो जाता है ।

              (4) नीम के पत्ते एवं निबौली को तेल में धीमी आंच  में पकाएं और छानकर एक्जीमा या छाजन पर लगाने से ठीक हो जाता है ।

              (5) नीम की छाल ,त्रिफला और परबल के पत्ते को उबालकर एक्जीमा या छाजन से प्रभावित जगहों को धोने से एक्जीमा या छाजन 

                    रोग दूर हो जाता है । 


sjogrens syndrome disease

श्रोगेन सिंड्रोम रोग :- श्रोगेन सिंड्रोम रोग एक कष्टप्रदायक बीमारी है।इस बीमारी में शरीर में नमी पैदा करने वाली ग्रंथियां नमी पैदा करना बंद कर देती है,परिणामस्वरूप शुष्क मुख एवं शुष्क नेत्र की समस्या पैदा हो जाती है।इसके अतिरिक्त श्रोगेन रोग के कारण शरीर में प्रतिरोधक क्षमता की कमी हो जाने के कारण खुजली,लालिमा,त्वचा का फटना या गलना आदि की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।श्रोगेन सिंड्रोम से ग्रस्त रोगी की सूखी त्वचा से परेशानी लगभग पूरे वर्ष बनी रहती है,फिर भी इसके लक्षण सर्दी के मौसम में अधिक प्रबल हो जाते हैं।श्रोगेन सिंड्रोम रोग में प्रतिरोधक क्षमता में ह्रास एवं नमी पैदा करने वाली ग्रंथियों का निष्क्रिय होना प्रमुख कारण है।

लक्षण :- मुंह और आँखें सूखना,मुंह में छाले,चुभन,स्वाद न महसूस करना,आवाज फटना,निगलने में परेशानी,आँखों में सूखापन,जोड़ों में अकड़न,रूखी त्वचा,सूखी खांसी आदि श्रोगेन सिंड्रोम के प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :- नमी पैदा करने वाली ग्रंथियों का निष्क्रिय हो जाना,प्रतिरोधक शक्ति का काम हो जाना आदि श्रोगेन सिंड्रोम के मुख्य कारण हैं।

उपचार :- (1) एलोवेरा जूस के प्रतिदिन सुबह -शाम सेवन करने से श्रोगेन सिंड्रोम रोग से मुक्ति मिल जाती है।

              (2) गुलाब जल में ग्लिसरीन मिलाकर पूरे शरीर पर लगाने से भी श्रोगेन सिंड्रोम रोग दूर हो जाता है।

              (3) नारियल तेल में कपूर मिलाकर शरीर पर लगाने से भी सूखी त्वचा से मुक्ति मिल जाती है।

              (4) अश्वगंधा पाउडर के सेवन से भी श्रोगेन सिंड्रोम रोग दूर हो जाता है।

              (5) मालकांगनी के बीजों के तेल को पूरे शरीर पर लगाने से श्रोगेन सिंड्रोम रोग दूर हो जाता है।


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