uric acid disease

यूरिक अम्ल रोग :-आजकल की जीवन शैली के कारण अनेक प्रकार की व्याधियों में यूरिक अम्ल रोग बहुत तेजी से लोगों को प्रभावित कर रहा है।यूरिक अम्ल एक कार्वनिक यौगिक है,जो कार्वन,हाइड्रोजन,ऑक्सीजन और नाइट्रोजन तत्त्वों से बना होता है।यह यौगिक शरीर को प्राप्त प्रोटीन से एमिनो अम्ल के रुप में प्राप्त होता है।पाचन की प्रक्रिया के दौरान जब प्रोटीन टूटता है तो शरीर में यूरिक अम्ल बनता है और जब शरीर में प्यूरिन न्यूक्लिओटाइडों टूट जाती है तो यूरिक अम्ल का जन्म होता है।बढ़ते हुए शिशुओं,बच्चों,युवाओं और गर्भवती स्त्रियों को ज्यादा प्रोटीन की आवश्यकता होती है ;किन्तु 25 वर्ष की उम्र के बाद शारीरिक परिश्रम कम करने वाले व्यक्तियों के लिए अधिकता में प्रोटीन से भरपूर आहार लेना ही यूरिक अम्ल का कारण सिद्ध होता है।

लक्षण:- मांसपेशियों में सूजन,हाथ और पैरों की अँगुलियों के जोड़ों में दर्द,शरीर में दर्द आदि यूरिक अम्ल के मुख्य कारण हैं।

कारण:- (1) प्रोटीनयुक्त भोजन का अत्यधिक प्रयोग जैसे-रेड मीट,समुद्री आहार,रेड वाइन,दाल,राजमा,गोभी,टमाटर,पालक,मटर,पनीर,भिंडी,अरबी,चावल आदि (2) शराब का अधिक सेवन (3) वजन के बढ़ने से (4) पानी का कम पीने के कारण (5) प्युटीन युक्त भोजन के अत्यधिक प्रयोग के कारण (6) ओमेगा-3 फैटी एसिड का ज्यादा प्रयोग करने के कारण ।

उपचार:- (1) चेरी,स्ट्राबेरी,ब्लूबेरी के सेवन से यूरिक अम्ल का नाश हो जाता है।

             (2) अनानास के सेवन से यूरिक अम्ल समाप्त हो जाता है ;क्योंकि अनानास में पाए जाने वाला ब्रोमेलाइन जो एंटी इन्फ्लेमेंटरी तत्त्वों से 

                  भरपूर होती है ;जिससे यूरिक अम्ल समाप्त हो जाता है ।

             (3) अजवाइन को दो कप पानी में उबालें और जब एक कप पानी रह जाय तो छानकर पीने से यूरिक अम्ल का बड़ी शीघ्रता से नाश 

                   हो जाता है।

             (4) भरपूर मात्रा में पानी पीने से यूरिक अम्ल पेशाब के द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है।

             (5) जैतून के तेल में बना हुआ आहार के सेवन से भी यूरिक अम्ल का नाश हो जाता है।

             (6) निम्बू के रस के सेवन करने से भी यूरिक अम्ल का नाश हो जाता है।

             (7) एक गिलास जल में आधा चम्मच बेकिंग सोडा मिलकर पीने से यूरिक अम्ल का नाश हो जाता है ;किन्तु रक्तचाप के मरीज 

                  इसका उपयोग ज्यादा न करें।


rectal prolapse disease

गुदा भ्रंश रोग:- गुदा भ्रंश रोग अधिकांशतः बच्चों में होनेवाला रोग है;किन्तु यह रोग पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में होनेवाला रोग है।इस बीमारी में कब्ज,अर्श,अतिसार ,कृमि,कुकुरखांसी,दमा,बहुप्रसव आदि दशाओं में उदर के भीतर दाब बढ़ जाने के कारण इस बीमारी की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है।मल त्याग के समय गुदा और आमाशय की सारी नलिका तक गुदा द्वार के बाहर आ जाती है।कब्ज से पीड़ित व्यक्ति जब जोर लगाता है तो मल के साथ-साथ गुदा की त्वचा भी बाहर निकल जाती है।इसे गुदा भ्रंश या कांच निकलना भी कहा जाता है।

लक्षण:-मल द्वार में खुजली होना,कब्ज होना,पेट में कृमि होना आदि गुदा भ्रंश रोग के मुख्य लक्षण हैं।

कारण:-अधिक दस्त होना,शारीरिक रुप से कमजोर होना,कब्ज होना,कुकरखांसी होना आदि गुदा भ्रंश रोग के प्रमुख कारण हैं।

उपचार:- (1) एरंडी का तेल आधा चम्मच हलके गुनगुने दूध में मिलाकर प्रतिदिन रात को सोते समय पीने से गुदा 

                  भ्रंश या कांच निकलना बंद हो जाता है।

             (2) आंवले का मुरब्बा बनाकर दूध के साथ खाने से कब्ज समाप्त हो जाती है  और गुदा भ्रंश रोग नष्ट हो 

                   जाता है।

             (3) काली मिर्च 10 ग्राम और भुना हुआ जीरा 20 ग्राम दोनों को मिलाकर चूर्ण बनाकर एक चम्मच की 

                 मात्रा प्रतिदिन छाछ के साथ सुबह-शाम सेवन करने से गुदा भ्रंश की बीमारी दूर हो जाती है। 

             (4) अनार के छिलके 5 ग्राम,माजूफल 5 ग्राम और हब्ब अलायस 5 ग्राम सबको मिलाकर कूट लें और 

                   200 मिलीलीटर पानी में मिलाकर उबालें।जब एक चौथाई पानी रह जाय तो उसे छानकर गुदा को 

                   धोने से गुदा भ्रंश या कांच का निकलना बंद हो जाता है।

              (5) 100 ग्राम अनार के पत्तों को एक लीटर जल में उबालें और छानकर दिन में तीन बार गुदा को धोने 

                    से गुदाभ्रंश या कांच का निकलना बंद हो जाता है।

 


diarrhea disease

अतिसार रोग:- अतिसार या डायरिया प्रदूषित जल एवं खाद्य पदार्थों के सेवन से होने वाली एक आम बीमारी है।इसमें बार-बार  मल  त्याग करना पड़ता है,जो बहुत पतले,जिनमें जल का भाग अधिक होता है एवं थोड़े-थोड़े अंतराल से आते रहते हैं।अधिक समय तक बने रहने से या उग्र दशा में थोड़े ही समय में रोगी का शरीर दुर्बल जाता है और जल एवं खनिज तत्वों की कमी के कारण मृत्यु तक हो सकती है।

लक्षण:- दस्त का बार-बार आना,पेट के निचले हिस्से में पीड़ा,पेट में मरोड़ होना,मल त्याग के पूर्व बेचैनी होना,बहुत अधिक दुर्बलता होना,आँखों के सामने अँधेरा छा जाना,मुर्दा जैसी स्थिति हो जाना आदि अतिसार या डायरिया के मुख्य लक्षण हैं।

कारण:- (1) आंत में अधिक द्रव के इकठ्ठा हो जाने के कारण 

            (2) आंत द्वारा तरल पदार्थ को काम मात्रा में अवशोषित करने के कारण 

            (3)  अंतड़ियों में मल के तेजी से गुजर जाने की वजह 

            (4) आहार जन्य विष जैसे -संखिया या पारद के लवण पेट में पहुँच जाने के कारण 

            (5) जीवाणुओं द्वारा संक्रमण तथा टॉक्सिन के कारण 

            (6) हायपर थायरॉडिज़्म के कारण 

            (7) भय,चिंता,या मानसिक व्यथाएँ के कारण 

            (8) आंत के रोग जैसे -अर्बुद आदि के कारण 

            (9) पसीना में होते हुए तेज हवा में जाने के कारण 

            (10) ख़राब या बासी भोजन खाने के कारण 

            (11) उत्तेजक औषधियों के सेवन के कारण 

            (12) क्षुदांत्र तथा बृहदान्त्र में शोथ के कारण से अतिसार के लक्षण हो सकते हैं।                                

            (13) संक्रमण से भी प्रवाहिका ।

उपचार:- (1) बेल के गुदा पानी में मथकर थोड़ी शक्कर मिला कर प्रतिदिन सुबह कुछ दिनों तक सेवन करने से 

                 अतिसार समाप्त हो जाती है।

             (2) पीपल के पत्तों को पानी में उबालें और छान कर पीने से अतिसार ठीक हो जाता है।

             (3) सोंफ,इसबगोल ,बेलगिरी और चीनी सबको 100 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख लें और 

                   प्रतिदिन पाँच ग्राम की मात्रा सुबह-शाम छाछ या ताजे पानी के साथ सेवन से अतिसार के नाश हो 

                   जाता है।

              (4) दूब के रस या काढ़ा के सेवन से भी अतिसार समाप्त हो जाता है। 


              (5) जामुन और आम की गुठली के चूर्ण का सेवन मट्ठे या ताजे जल के साथ करने से अतिसार का नाश 

                    हो जाता है।

              (6) पके हुए जामुन का रस चार-पाँच चम्मच लेकर उसमें चीनी या जीरा या गुड़ मिलाकर सेवन करने से 

                   अतिसार दूर हो जाता है।

              (7) लौकी का रायता छाछ में बनाकर भोजन के समय सेवन करने से अतिसार की समस्या दूर हो जाती 

                    है।

              (8) शहद और छाछ मिला कर पीने से भी अतिसार का नाश हो जाता है।

                            (9) इंद्रा जौ,नागरमोथा,बेलगिरी,पठानी लोध और धायके फूल समान भाग लेकर कूट पीस कपड़छान 

                   कर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन तीन से चार ग्राम सुबह छाछ के साथ सेवन करने से अतिसार का नाश हो 

                    जाता है।

               (10) पीपर,हरड़ और काला नमक का चूर्ण बनाकर तीन बार सेवन करने से ही अतिसार समाप्त हो 

                      जाता है।

 


gallbladder stones

पित्ताशय की पथरी:- पित्ताशय मानव शरीर में एक संग्राहक अंग के रुप में पाया जाता है,जो लिवर द्वारा बनाये पित्त को संग्रह करता है।यह लिवर के नीचे पेट के दायीं ओर स्थित होता है।जब लिवर पित्त (बाइल) बनाता है तो वह बाइल डक्ट्स से होते हुए पित्ताशय में चला जाता है।पित्ताशय पित्त को संगृहीत करके नियंत्रित करता है,जिसके लिए उसमें मिनरल साल्ट एवं एंजाइम मिलता है।फैट के पाचन के समय आंत में स्रावित कर देता है।जब मानव शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है,तब पित्ताशय में वह कोलेस्ट्रॉल पथरी की तरह पित्ताशय की पथरी:- पित्ताशय मानव शरीर में एक संग्राहक अंग के रुप में पाया जाता है,जो लिवर द्वारा बनाये पित्त को संग्रह करता है।यह लिवर के नीचे पेट के दायीं ओर स्थित होता है।जब लिवर पित्त (बाइल) बनाता है तो वह बाइल डक्ट्स से होते हुए पित्ताशय में चला जाता है।पित्ताशय पित्त को संगृहीत करके नियंत्रित करता है,जिसके लिए उसमें मिनरल साल्ट एवं एंजाइम मिलता है।फैट के पाचन के समय आंत में स्रावित कर देता है।जब मानव शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है,तब पित्ताशय में वह कोलेस्ट्रॉल पथरी की तरह जैम जाता है।परिणामस्वरुप पित्ताशय में सूजन (पित्ताशय शोथ ) हो जाता है,जिससे पेट की दायीं ओर ऊपरी भागों में अचानक  दर्द होने लगता है,जिसे गॉलब्लेडरअटैक( बिलियरी  कोलिक )कहा जाता है।

लक्षण:- अचानक तीव्र दर्द,लगातार दर्द,पीलिया, बुखार,त्वचा में खुजली,दस्त,ठण्ड लगना,कांपना,उलझन,भूख में कमी आदि पित्ताशय की पथरी के प्रमुख कारण हैं।

उपचार:- (1) पपीता के पेड़ का जड़ अंगुली के समान पतला तर्जनी वाले अंगुली के बराबर टुकड़ा लेकर उसे 

       पानी के साथ पीस लें और रस निकाल कर प्रतिदिन सुबह सेवन करने से पित्त की पथरी का नाश हो जाता है।

             (2) जड़ युक्त धनिया का पौधा और तर्जनी अंगुली के बराबर पपीता का जड़ दोनों को पीसकर रस 

                  निकाल कर प्रतिदिन पीने से पित्ताशय की पथरी समाप्त हो जाती है।

             (3) कुलथी दाल को एक कप पानी में भिगो दें और छान कर पानी को पीने से कुछ ही दिनों में पित्त की 

                   पथरी  में आराम होता है।

             (4) गुड़हल के चार-पाँच फूलों को प्रतिदिन सुबह खाने से कुछ ही दिनों में पित्त की पथरी समाप्त हो 

                  जाती है। 

             (5) कुलथी दाल 30 ग्राम ,गोखरु 30 ग्राम,वरुणछाल 30 ग्राम, पुनर्वा 15 ग्राम,पाषाणभेद 15 ग्राम,मेथी 

                  7 ग्राम सबको मिलकर रख लें और 10 ग्राम की मात्रा आधा लीटर पानी में डालकर धीमे आंच पर 

                  उबाले और जब एक कप पानी रह जाय,तब छान कर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से पित्ताशय की 

                  पथरी का नाश हो जाता है। जाता है।परिणामस्वरुप पित्ताशय में सूजन (पित्ताशय शोथ ) हो जाता है,जिससे पेट की दायीं ओर ऊपरी भागों में अचानक  दर्द होने लगता है,जिसे गॉलब्लेडरअटैक( बिलियरी  कोलिक )कहा जाता है।

लक्षण:- अचानक तीव्र दर्द,लगातार दर्द,पीलिया, बुखार,त्वचा में खुजली,दस्त,ठण्ड लगना,कांपना,उलझन,भूख में कमी आदि पित्ताशय की पथरी के प्रमुख कारण हैं।

उपचार:- (1) पपीता के पेड़ का जड़ अंगुली के समान पतला तर्जनी वाले अंगुली के बराबर टुकड़ा लेकर उसे 

       पानी के साथ पीस लें और रस निकाल कर प्रतिदिन सुबह सेवन करने से पित्त की पथरी का नाश हो जाता है।

             (2) जड़ युक्त धनिया का पौधा और तर्जनी अंगुली के बराबर पपीता का जड़ दोनों को पीसकर रस 

                  निकाल कर प्रतिदिन पीने से पित्ताशय की पथरी समाप्त हो जाती है।

             (3) कुलथी दाल को एक कप पानी में भिगो दें और छान कर पानी को पीने से कुछ ही दिनों में पित्त की 

                   पथरी  में आराम होता है।

             (4) गुड़हल के चार-पाँच फूलों को प्रतिदिन सुबह खाने से कुछ ही दिनों में पित्त की पथरी समाप्त हो 

                  जाती है। 

             (5) कुलथी दाल 30 ग्राम ,गोखरु 30 ग्राम,वरुणछाल 30 ग्राम, पुनर्वा 15 ग्राम,पाषाणभेद 15 ग्राम,मेथी 

                  7 ग्राम सबको मिलकर रख लें और 10 ग्राम की मात्रा आधा लीटर पानी में डालकर धीमे आंच पर 

                  उबाले और जब एक कप पानी रह जाय,तब छान कर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से पित्ताशय की 

                  पथरी का नाश हो जाता है।


jaundice disease

पीलिया,कामला या पाण्डु रोग :-मानव शरीर के रक्त में लाल रक्त कण पाए जाते हैं,जिनकी आयु 120 दिनों की होती है। तत्पश्चात लाल रक्त कण नष्ट होकर बिलीरुबिन में परिवर्तित हो जाता है।चूँकि शरीर के अंगों द्वारा इसे शरीर के बाहर उत्सर्जी अंगों द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है। ऐसी स्थिति होती है जब इन पदार्थों का भलीभांति प्रकार से शरीर से बाहर नहीं निकलना और बिलीरुबिन का रक्त में अधिक हो जाना ही पीलिया का मुख्य कारण है।बिलीरुबिन के बढ़ जाने से शरीर के अंगों में पीलापन आने के कारण ही इस बीमारी का नाम पीलिया है।सर्वप्रथम यह बीमारी पाण्डु को हुआ था,इसलिए इसे पाण्डु रोग भी कहा जाता है।

कारण एवं लक्षण:-(1)वातज -वादी अन्न आदि के सेवन करने एवं उपवास आदि करने के कारण वायु कुपित होने 

                             से कष्टदायक पीलिया हो जाती है।इसमें शरीर का रंग पीला,रुखा एवं कला रंग मिला सा हो 

                             जाता है।शरीर में दर्द होना,सुई चुभने जैसा दर्द होना,मॉल का सूख जाना,सूजन,कमजोरी एवं 

                              अफारा होना मुख्य लक्षण हैं। 

                          (2)पित्तज -पित्तकारक आहार -विहार से पित्त कुपित होने से रक्तादि धातुओं के दूषित होने से 

                               पाण्डु रोग हो जाता हैं।इसमें नेत्रों में पीलापन लिए हुए ललाई रहती हैं। इसमें रोगी का रंग 

                               पीला,ज्वर,दाह,वमन,मूर्छा और प्यास तथा मल-मूत्र का पीला होना,मुँह का कड़ुआ 

                               रहना,भूख न लगना,खाने की इच्छा न होना,खट्टी डकारें आना,मल पतला होना,बदन से 

                               बदबू आना,आँखों के सामने अँधेरा छाना आदि इसके मुख्य लक्षण हैं। 

                           (3)कफज-क:फकारी पदार्थों के सेवन से कफ कुपित होकर रक्तादि धातुओं को दूषित कर कफ पीलिया या पाण्डु 

                रोग पैदा करता है।भारीपन,तन्द्रा,वमन,सफ़ेद रंग होना,लार गिरना,रोएँ खड़े होना,थकान मालूम 

                होना,बेहोशी,भ्रम,आलस्य,अरूचि,गला बैठना,आवाज रुकना,मूत्र,नेत्र और मल सफ़ेद होना,कड़ुवे,खट्टे 

                पदार्थों का अच्छा लगना आदि इसके मुख्य लक्षण हैं। 

(4)सन्निपात:-यह सब प्रकार के अन्नों के सेवन करने वाले मनुष्य को होता है।इसमें तीन दोषों का कुपित होना अत्यंत 

                  असह्य घोर कष्टप्रद होता है।इनमें तन्द्रा,आलस्य,सूजन,वमन,खाँसी,पतले दस्त,ज्वर,मोह,प्यास,ग्लानि 

                  और इन्द्रियों की शक्ति का नाश आदि लक्षण होते हैं।

(5)मिट्टी खाने से पाण्डु:-मिट्टी खाने से उत्पन्न पाण्डु रोग में वाट,पित्त और कफ दूषित हो जाता है कसैली मिट्टी से 

                    वायु कुपित होती है।खारी मिट्टी से पित्त और मीठी मिट्टी से कफ कुपित हो जाती है।पेट में 

                     मिट्टी जाकर रसादि धातुओं को रुखा कर देती है।फलस्वरूप व्यक्ति का शरीर रुखा हो जाता 

                      है,शरीर की कांति और ओज क्षीण हो जाती है तथा पाण्डु रोग हो जाता है। 

उपचार:-(1)फूल फिटकरी २० ग्राम चूर्ण लेकर उसकी 21 पुड़िया बना लें और एक पुड़िया की आधी दवा सुबह 

                 मलाई निकले दही में चीनी मिलाकर ख़ाली पेट और इसी प्रकार रात्रि में सोते समय आधी बची पुड़िया 

                 खा लें।इस प्रकार २१ दिनों तक लगातार दवा खाने से पीलिया रोग सही हो जाता है।यह अचूक एवं 

                 अनुभूत औषधि है।(नोट ५० ग्राम फिटकरी गर्म तवा पर डालें और पानी सुख जाने पर पीस कर रख लें)

              (2)घी के साथ वंग भस्म की चने की दाल के बराबर मात्रा मिलाकर सेवन करने से पीलिया या पाण्डु रोग 

                  का समूल नाश हो जाता है।

               (3)पीपल की जड़  को पानी में भिंगों कर रखें और उसमें पीसी हुई काली मिर्च और कला नमक एवं 

                    निम्बू का रस मिलाकर पीने से पाण्डु रोग नष्ट हो जाता है। 

               (4)आक के पौधे की जड़ दो ग्राम की मात्रा लेकर पीस लें और उसमें थोड़ी सी शहद मिला कर खाने से 

                    पाण्डु रोग का समूल नाश हो जाता है। 

                (5)आंवला,सोंठ,हल्दी,काली मिर्च और लौह भस्म समान भाग लेकर चूर्ण बना लें और सुबह -शाम 1.5 

                     ग्राम की खाने से पीलिया रोग का नाश हो जाता है।  

 

 


pancreatic cancer

अग्नाशय कैंसर:- आज के वर्तमान परिवेश में रोजाना की भागदौड़ भरी जिंदगी में हमारे खान -पान की अनियमितता,तौर -तरीकों,प्रदूषित एवं कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग के कारण खाद्य-पदार्थों की गुणवत्ता में लगातार ह्रास देखने को मिलता है।परिणामस्वरुप मनुष्य विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रस्त है।उनमें अग्नाशय कैंसर एक बहुत ही खतरनाक रोग है।अग्नाशय यानि पाचक ग्रंथि मानव शरीर का अति महत्त्वपूर्ण अंग है। कैंसर अग्नाशय में कैंसर युक्त कोशिकाओं से होता है,जो अधिकतर 60 साल से अधिक उम्र के लोगों में उम्र बढ़ने के साथ डीे एन ए में कैंसर पैदा करने वाले बदलाव के कारण होते हैं।इसके अतिरिक्त धूम्रपान करने वाले एवं रेड मीट और चर्बी युक्त आहार के सेवन करने वाले को अग्नाशय कैंसर होने का ज्यादा खतरा रहता है।

लक्षण:- पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द होना,भूख में कमी होना,वजन का तेजी काम होना,पीलिया का होना,नाक से खून आना,वामन होना आदि अग्नाशय कैंसर के मुख्य लक्षण हैं।

कारण:- धूम्रपान करना,रेड मीटऔर चर्बीयुक्त आहार का सेवन करना,अधिक समय तक अग्नाशय में जलन होना,अधिक मोटापा होना,कीटनाशकों की फैक्ट्री में काम करने के कारण से अग्नाशय कैंसर होता है।

उपचार:- (1) लहसुन की कलियों को शहद में डुबो दें और एक सप्ताह के बाद से प्रतिदिन तीन -चार                              कलियों का सेवन करने से अग्नाशय कैंसर की बीमारी दूर होती हैl(2) ताजे फलों के रस का सेवन प्रतिदिन सुबह नाश्ते के बाद करने से अग्नाशय कैंसर का नाश हो जाता 

                    है।

               (3) व्हीट ग्रास के रस का सेवन भी अग्नाशय कैंसर को दूर करता है।

               (4)एलोवेरा जूस के सेवन से अग्नाशय कैंसर समूल नष्ट होता है। 

               (5) अंगूर में पाया जाने वाला पोरंथोसाइनिडींस की मात्रा भरपूर होती है,जिसके कारण एस्ट्रोजन के  निर्माण में मदद मिलती है जिसके कारण अग्नाशय कैंसर ठीक हो जाता है।

               (6) ब्रोकली में मौजूद फायटोकेमिकल अग्नाशय कैंसर युक्त कोशिकाओं से लड़ने में मदद मिलती है और कैंसर समाप्त हो जाती है।


constipation disease

कब्ज :-मनुष्य द्वारा प्रदूषित जल एवं खाद्य -पदार्थों के सेवन,खान -पान की गलत आदतें,जितनी भूख लगी है उससे ज्यादा खाना,खान -पान में अनियमितता,मांस का भक्षण,जंक -फ़ूड का अत्यधिक भक्षण,फल -सलाद एवं सब्जियों का अल्प उपयोग आदि कारणों से कब्ज रुपी व्याधि का जन्म होता है।परिणामस्वरूप प्रातः ठीक से पेट साफ नहीं हो पाता है।कब्ज से केवल वृद्ध ही नहीं युवा भी ग्रसित हैं।कब्ज की वजह से आँतों की क्रियाशीलता मंद हो जाती है:नतीजन पाचन शक्ति कम हो जाती है और सही ढंग से भोजन हजम नहीं हो पाता। भोजन हजम न होने की स्थिति  में अवशिष्ट पदार्थ बड़ी आंत में समय पर नहीं पहुँच पाता है और मलत्याग ठीक से नहीं होता;जिसे कब्ज कहते हैं।

लक्षण :-पेट में गैस का बनना,पेट में हवा भरना,पेट में दर्द या भारीपन,सिरदर्द,भूख में कमी,जीभ पर अनाज के कणों का चिपकना,मुँह का स्वाद बिगड़ना,चक्कर आना,पैरों में दर्द होना,आलस्य का आना,नींद -सी छाई रहनाऔर धड़कन का बढ़ना आदि कब्ज के प्रमुख लक्षण हैं। 

कारण :-प्रदूषित जल एवं खाद्य पदार्थ,अधिक मद्यपान एवं धूम्रपान का प्रयोग,तला-भुना,मसालेदार भोजन का ज्यादा प्रयोग,एलोपैथिक औषधि का ज्यादा प्रयोग,खाने -पीने का अनियमित होना,उत्सर्जन क्रिया में देरी या वेग को रोकना,थायरॉयड के कारण,बिस्तर में ज्यादा लेटे रहना आदि कब्ज के मुख्य कारण हैं।  

उपचार :-(1 )हरड़ काबुली और निसोथ सामान भाग लेकर कूट पीस कपड़छान कर चूर्ण बना समान भाग मिश्री 

                 मिलकर रख लें।सोते समय एक चम्मच गरम जल के साथ खाने से दस्त खुलकर आता है और कब्ज 

                 का नाश हो जाता है। 

            (2)सुहागा को गरम तवे पर तब तक भूने जब चिरचिराहट बंद हो जाये।उसके बाद उसे कर्ण बना कर कांच की 

               शीशी में बंद कर रख लें।खाने के दी घंटे बाद एक चने की दाल के बराबर मात्रा लेकर गरम जल के साथ खाने से 

               पेट की बड़ी आंत की गंदगी साफ कर कब्ज की बीमारी को जड़ से मिटा देती है।यह रामबाण औषधि है ,यह 

                कभी भी और किसी भी स्थिति में धोखा नहीं देने वाली है।यूँ कहें अचूक एवं अनुभूत है।

           (3 )हरीतकी चूर्ण एक चम्मच रात को सोते समय गुनगुने जल के साथ सेवन करने से कब्ज का नाश हो जाता है। 

          (4 )अरंड का तेल एक चम्मच थोड़ा गुनगुना जल या दूध के साथ सेवन करने से कब्ज का नाश होता है।

          (5 )सोंफ,सनाय पत्ती,सोंठ,सेंधा नमक और शिवा (हरड़ )के चूर्ण ,जिसे पंचसकार चूर्ण के नाम से भी जाना जाता है,

               इसे गुनगुने जल के साथ रात को सोते समय सेवन करने से कब्ज का नाश हो जाता है।


piles disease

बबासीर:-बबासीर या पाइल्स एक खतरनाक एवं भयंकर कष्ट प्रदान करने वाली बीमारी है।यह दो प्रकार की होती है -खुनी एवं वादी।वैसे तो प्राचीन काल से ही बहुत सी असाध्य बीमारियां हुई हैं और उसका इलाज भी आसानी से हुआ है; किन्तु कुछ बीमारियों के इलाज बड़ी कठिनाइयों से हुआ ;उनमें बबासीर भी एक है।बबासीर की बीमारी आधुनिकता की दौर में अभक्ष्य पदार्थों के सेवन का प्रतिफल एवं प्रदूषित खाद्य पदार्थों के कुपरिणाम भी कह सकते हैं।  इस बीमारी में आँतों के अंतिम भाग या गुदा (मलाशय) की भीतरी दीवार में रक्त की नसें सूजने के कारण फूल जातीं हैं और मल त्याग के वक्त ताकत लगाने से कड़े मल के रगड़ खाने से खून की नसों में दरार पड़ जाती हैं एवं उसमें से खून बहने लगता है। अधिक रक्त स्राव ,कब्जियत ,गुदा स्थान का पक जाने के कारण भयंकर कष्टमय एवं दुखित जीवन व्यतीत करना मजबूरी बन जाती है।  

उपचार:- (1 )मग्ज तुख्म नीम,छोटी इलायची,माजूफल सबको समान भाग लेकर बारीक कूट पीस कपड़छान कर चूर्ण बनाकर सुबह -शाम 2 

                  माशा की मात्रा सेवन करने से बबासीर जड़ से समाप्त हो जाती है। यह अचूक एवं अनुभूत औधधि है।

              (2 )जटामांसी और हल्दी समान भाग लें और पीसकर मस्सों पर लगाने से बबासीर नष्ट हो जाता है।

              (3 )भिंडी के पौधे की जड़ को कूट पीस कपड़छान कर चूर्ण बनाकर प्रातः जल के साथ खाने से बबासीर जड़ से ठीक हो जाता है।यह 

                   अनुभूत औषधि है।

               (4 )जिमीकंद के पाउडर को छाछ के साथ प्रतिदिन खाने से बबासीर की बीमारी जड़ से नष्ट हो जाती है।यह अचूक एवं अनुभूत 

                    औषधि है।

               (5 )हरीतकी चूर्ण को दूध के साथ दिन में तीन बार एक -एक चम्मच लेने से सूखी एवं खुनी बबासीर नष्ट हो जाती है।


Vaayu Vikar

पेट में वायु या गैस :-लक्षण :-पेट का भारीपन ,मंदाग्नि ,भूख न लगना ,कब्ज ,मन किसी भी काम में न लगना ,अनिच्छा , खट्टी डकार आना ,वायु का पेट में इधर- उधर चलने जैसा अनुभव होना,गैस के कारण सीने में जलन होना ,पेट में कभी-कभी दर्द का होना इत्यादि । 

उपचार सामग्री : - (1)     (१) ५० ग्राम अजवाइन (२)५० ग्राम मेथी (३)  (५० ग्राम सोंठ  (४) एक छोटी डिब्बी हींग (५) स्वादानुसार काला नमक                                           

ऊपर वर्णित इन सब वस्तुओं को साफ कर एवं बारीक पीसकर कपड़छान कर लें और उसमें स्वाद केअनुसार काला नमक मिलाकर एक डिब्बे में रख लें और जब कभी भी पेट में गैस की समस्या हो आधा या एक चम्मच चूर्ण को गरम जल के साथ सेवन करने से पेट की गैस से तुरंत राहत मिलती है ।यह अचूक एवं अनुभूत औषधि है, इसमें कोई संदेह नहीं है |                                                                                                     

 

    (2 )जटामांसी 100 ग्राम,मिश्री 200 ग्राम,दालचीनी 25 ग्राम,शीतल चीनी 25 ग्राम,सोंफ २५ ग्राम और सोंठ २५ग्राम सब को चूर्ण बनाकर मिला लें और 3 -6 ग्राम की मात्रा दिन में सुबह -शाम सेवन करने से वायु विकार समाप्त हो जाता है ।यह अचूक एवं अनुभूत औषधि है ।


  बच्चों के रोग

  पुरुषों के रोग

  स्त्री रोग

  पाचन तंत्र

  त्वचा के रोग

  श्वसन तंत्र के रोग

  ज्वर या बुखार

  मानसिक रोग

  कान,नाक एवं गला रोग

  सिर के रोग

  तंत्रिका रोग

  मोटापा रोग

  बालों के रोग

  जोड़ एवं हड्डी रोग

  रक्त रोग

  मांसपेशियों का रोग

  संक्रामक रोग

  नसों या वेन्स के रोग

  एलर्जी रोग

  मुँह ,दांत के रोग

  मूत्र तंत्र के रोग

  ह्रदय रोग

  आँखों के रोग

  यौन जनित रोग

  गुर्दा रोग

  आँतों के रोग

  लिवर के रोग