कंठमाला या गण्डमाला :-इस बीमारी में गले की ग्रंथियां बढ़ जाती हैं और एक माला के रूप में बन जाती है ;इसलिए इसे कंठमाला कहते हैं ।आयुर्वेद में गण्डमाला या अपची भी कहा जाता है ।इसमें प्रायः कफ एवं मेद की अधिकता होती है इसमें ग्रीवा प्रदेश की लिम्फ ग्रंथि बढ़ जाती है।इसमें  मुख में,गले की भीतर,कान या शिर पर किसी प्रकार शोथ या पाक के कारण ग्रंथियां बढ़ जाती हैं

उपचार:-(1 )कचनार की छाल 50 ग्राम को कूट पीसकर कलईदार बर्तन में 50 ग्राम जल में पकाएं और जब 50 ग्राम शेष रहे तो उतारकर छान लें तथा उसमें 3 -5 ग्राम सोंठ का चूर्ण तथा 10 ग्राम शहद मिलाकर ३० दिनों तक पीने से कंठमाला रोग दूर हो जाता है

()चोबचीनी का चूर्ण 4 -8 ग्राम तक प्रतिदिन do बार शहद के साथ चाटने से कंठमालाको रोग से मुक्ति मिल जाती है

(3 )नीम की छाल के साथ उसके पत्तों को मिलाकार क्वाथ बनाकर पीने से कंठमाला का नाश होता है

(4 )काली जीरी के साथ धतूरे के बीज तथा अफीम घोंट कर जल में गरम कर काढ़ा को गले पर लेप करने से कंठमाला रोग से मुक्ति मिलती है  

 

 

 


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